बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान
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(Cardiovascular System)
प्रश्न- हृदय की संरचना एवं कार्य का विस्तृत वर्णन कीजिए।
अथवा
रुधिर क्या है? इसकी रचना एवं विभिन्न घटकों के कार्य का उल्लेख कीजिए
अथवा
चित्र की सहायता से हृदय की संरचना का सविस्तार वर्णन कीजिये।
लघु प्रश्न
1. रक्त का संगठन समझाइए।
2. रुधिर वर्ग कितने प्रकार का होता है?
3. हृदय स्पन्दन से क्या अभिप्राय है?
4. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए - (i) रुधिर का जमना , (ii) हृदय की संरचना एवं कार्य, (iii) रक्त के कार्य, (iv) हृदय के कार्य, (v) रक्त में संगठन, (vi) रक्त समूह, (vii) हृदय गति ।
5. चित्र द्वारा हृदय की आन्तरिक संरचना का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
6. '0' रक्त समूह वाले व्यक्ति को सर्वदाता कहा जाता है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
7. चित्र द्वारा हृदय की आन्तरिक संरचना बनाइए।
8. लाल रक्त कण एवं श्वेत रक्त कण पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
हृदय मानव शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। वह अपने अन्दर रुधिर (blood) के एकत्र करने तथा सम्पूर्ण शरीर में रक्त का संचालन करने का महत्वपूर्ण कार्य करता है। हृदय एक प्रकार से पम्प के समान कार्य करता रहता है, जिससे रुधिर नलिकाओं द्वारा सम्पूर्ण शरीर में रुधिर पहुंचाने की व्यवस्था होती है। रुधिर नलिकाओं में केवल रुधिर स्थिर रूप से भरा ही नहीं रहता है बल्कि हृदय पम्प के समान गति करके रुधिर को झटके से इस प्रकार प्रवाहित करता है कि सामान्य स्थिति में रुधिर निरन्तर एक समान गति से प्रवाहित होता रहता है।
रुधिर तरल संयोजी ऊतक है जिसका अन्तः कोशिकीय मैट्रिक्स तरल के रूप में होता है। यह लाल रंग का द्रव है जो शरीर के कुल भार का लगभग सात प्रतिशत होता है। रुधिर प्लाज्मा तथा रुधिर कणिकाओं में भिन्नत होता है।
रक्त संगठन (Blood Composition) - खुली आँखों से देखने पर रक्त एक गाढ़ा तरल द्रव्य दिखाई देता है। सूक्ष्मदर्शी यन्त्र से देखने पर रक्त के स्पष्ट दो भाग दिखाई देते हैं।
(1) तरल भाग जिसे प्लाज्मा कहते हैं खुली आँखों से देखने पर यही भाग दिखाई देता है।
(2) ठोस भाग जिसे रक्त कणिकाएँ कहते हैं। ये रक्त कणिकाएँ तरल भाग प्लाज्मा में तैरती हैं,
पर यह इतनी सूक्ष्म होती हैं कि खुली आँखों से नहीं दिखाई देती हैं।
1. प्लाज्मा (Plasma) प्लाज्मा रुधिर का अजीवित भाग है जो इसके कुल भार का 55% होता है। यह रंगविहीन द्रव है, किन्तु अधिक मात्रा में होने पर यह ग्रे या पीले रंग का दिखाई देता है। इस तरल पदार्थ में रक्त कणिकायें तैरती रहती हैं। इसकी रासायनिक रचना शरीर के विभिन्न भागों में अलग-अलग होती है। सामान्य रूप से इसमें निम्न रासायनिक यौगिक मिलते हैं
(i) जल
(ii) प्रोटीन (एल्ब्यूमिन्स, ग्लोब्यूलिन्स)
(iii) कार्बनिक घटक ( वसा, कार्बोहाइड्रेट तथा लिपिड इत्यादि)
(iv) अकार्बनिक घटक (कैल्सियम, पोटैशियम, सोडियम तथा मैग्नीशियम इत्यादि)
(v) एन्जाइम्स (लाइपेज, ग्लूकोलेज, प्रोटिएज, न्यूक्लिएज तथा ऑक्सीडेज इत्यादि)
(vi) हॉरमोन्स (इन्सूलिन, थाइरोक्सिन तथा एड्रेनेलिन इत्यादि)
(vii) गैस (ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड)
(viii) लाल रुधिर कणिकायें
प्लाज्मा के कार्य (Functions of Plasma) यह निम्नलिखित कार्य करता है लिम्फ निर्माण, रुधिर का थक्का बनाना, आहार का परिवहन, ऑक्सीजन का परिवहन, कार्बन-डाइऑक्साइड का निष्कासन, जल सन्तुलन का नियमन, रोगों से प्रतिरक्षा तथा उत्सर्जी पदार्थों को हटाना इत्यादि।
2. रुधिराणु (Blood Corpuscles) (i) लाल रुधिर कणिकायें (Red Blood Corpuscles) - लाल रुधिर कणिकाएँ रुधिर में असंख्य होती हैं। रुधिर में इनकी इतनी अधिक संख्या होती है कि रुधिर लाल रंग का दिखलाई पड़ने लगता है। लाल रुधिर कणिकाओं का आकार वृत्ताकार द्विउत्तल डिस्क के समान होता है। लाल रुधिर. कणिकाएँ अत्यन्त लचीली होती हैं। इनका व्यास लगभग 7.7 होता। लाल रुधिर कणिकाएँ अर्द्ध तरल जीवद्रव्य की बनी होती हैं। लाल रुधिर कणिकाओं में रुधिर प्रदान करने वाला पदार्थ हीमोग्लोबिन उपस्थित रहता है। हीमोग्लोबिन में आयरन अधिक मात्रा में पाया जाता है। हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है तथा आयरन ऑक्सीजन के साथ संयोग करने की शक्ति रखता है। हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन को आकर्षित करके उसे अपने में मिलाकर तुरन्त एक यौगिक को बनाता है जिसे ऑक्सीहीमोग्लोबिन कहते हैं। यह अस्थायी यौगिक है जो निम्न ऑक्सीजन वाले क्षेत्रों में टूटकर ऑक्सीजन को मुक्त कर देता है तथा ऑक्सीजन ऊतकीय श्वसन के काम आती है।
(ii) श्वेत रुधिर कणिकायें (White Blood Corpuscles) - श्वेत रुधिर कणिकाएँ रंगहीन तथा परिवर्तनशील होती हैं। इसकी आकृति पानी में तैरने वीले अमीबा के समान होती हैं। यह लाल रुधिर कणिकाओं से कुछ बड़ी होती हैं। श्वेत रुधिर कणिकाएँ रुधिर में प्रति घन मिमी. 5000 से 9000 तक होती हैं। बच्चों व रोगजनक दशा में ये अधिक संख्या में मिलती हैं। संख्या में वृद्धि होने को ल्यूकोसाइटोसिन तथा कम होने पर ल्यूकोपीनिया कहते हैं। श्वेत रुधिर कणिकाओं में हीमोग्लोबिन का अभाव होता है। श्वेत रुधिर कणिकाओं का प्रमुख कार्य शरीर की रोग के रोगाणुओं से रक्षा करना है। श्वेत रुधिर कणिकाएँ प्रमुख रूप से दो प्रकार की होती हैं-
(i) ग्रेन्यूलोसाइट्स (Granulocytes) (ii) एग्रेन्यूलोसाइट्स (Agranulocytes)
ग्रेन्यूलोसाइट्स मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं-
(i) इओसिनोफिल,
(ii) बेसोफिल,
(iii) न्यूट्रोफिल
एग्रेन्यूलोसाइट्स दो प्रकार की होती हैं-
(i) लिम्फोसाइट्स,
(ii) मोनोसाइट्स।
इओसिनोफिन एन्टीजन एण्टीबॉडी प्रक्रिया के फलस्वरूप बने कणों का परिग्रहण करती है। बेसोफिल कार्बन आदि सूक्ष्म कणों का अंतर्ग्रहण करती हैं। न्यूट्रोफिल शरीर की जीवाणुओं आदि से रक्षा करती है। लिम्फोसाइट्स घाव भरने में सहायता करती हैं। मोनोसाइट्स मृत कोशिकाओं के निस्तारण का कार्य करते हैं।
3. रुधिर प्लेटलेट्स (Blood Platelets) - ये छोटी, रंगहीन, गोल या अण्डाकार कोशिकायें हैं जो बाह्य रूपरेखा में तर्क या छड़ के समान दिखाई देती हैं। प्रत्येक कोशिका का केन्द्रीय स्तर अत्यधिक परिवर्तनशील क्रोमोमीयर का बना होता है तथा इसमें जामनी रंग की कणिकायें पाई जाती है। रुधिर प्लेटलेट्स में चिपकने की अपार क्षमता होती है। इसकी कमी से शरीर में अनेक प्रकार से सूजन आ जाती है। यदि किसी दुर्घटनावश रुधिर शरीर से बहने लगे तो रुधिर प्लेटलेट्स रुधिर का थक्का जमाने में मुख्य भूमिका अदा करते हैं।
रुधिर का जमना (Coagulation of Blood) - जब कभी चोट लग जाने से किसी भाग के ऊतक की रुधिर कोशिकायें तथा वाहिनियाँ टूट-फूट जाती हैं तब इनसे एक प्रकार का द्रव निकलता है जो तुरन्त ही जैली के समान एक पदार्थ के रूप में जम जाता है। इस पदार्थ को थक्का (clot) तथा प्लाज्मा या सीरम से थक्का अलग-अलग होने की क्रिया को थक्का बनना या रुधिर का जमना कहते हैं।
रुधिर का थक्का जमना एक जटिल तथा रासायनिक प्रक्रिया है। इसमें रुधिर की द्रव अवस्था ठोस में परिवर्तित हो जाती है। रुधिर का थक्का अर्द्ध जैल अवस्था में होता है जिसमें से थोड़ा सा पदार्थ जिसे सीरम्, कहते हैं रुधिर के थक्का जमने से बाहर निकल जाता है। शरीर के किसी भी अंग में चोट लगने पर उसमें से रुधिर बहना शुरू हो जाता है, परन्तु 5 से 7 मिनट में वहाँ रुधिर का बहना बन्द हो जाता है, क्योंकि वहाँ रुधिर का थक्का बन जाता है जो रुधिर को बाहर बहने से रोकता है। रुधिर के प्लाज्मा में एक थ्रोम्बिन नामक पदार्थ होता है। यह रुधिर की फाइब्रिनोजन प्रोटीन को द्रव से ठोस में बदल देता है। जिस स्थान पर चोट लगती है वहाँ की कोशिकाओं और रुधिर प्लेटलेट्स टूटकर प्रोथ्रोम्बिन नामक पदार्थ का निर्माण करते हैं। यह प्रोथ्रोम्बिन प्लाज्मा के उपस्थित लवणों में से कैल्शियम आयन (Ca++) से मिलकर थ्रोम्बोप्लास्टिन (thromboplastin) नामक पदार्थ बनाती है। यह थ्रोम्बोप्लास्टिन एन्जाइम तथा कैल्शियम आयन की सहायता से प्लाज्मा में उपस्थित प्रोथ्रोम्बिन पदार्थ को निष्क्रिय कर देता है और थ्रोम्बिन का निर्माण करता है। प्लाज्मा उपस्थित हिपेरिन ही प्रोटीन प्रोथ्रोम्बिन होता है जो रुधिर का थक्का बनने से रोकता है। रुधिर में उपस्थित प्रोथ्रोम्बिन पदार्थ का निष्क्रिय रूप है। इसके निष्क्रिय हो जाने पर थ्रोम्बिन सक्रिय हो जाता है। यह थ्रोम्बिन प्लाज्मा की फाइब्रिनोजन प्रोट्रीन से क्रिया करके फाइब्रिन में बदल देता है। फाइब्रिन अविलेय ठोस प्रकृति की होती है जो घाव के ऊपर महीन तन्तुक जाल के रूप में फैल जाती है। इस तन्तुक जाल में अनेक प्रकार की रुधिर कणिकाएँ आकर फँस जाती हैं और रुधिर का थक्का बन जाता है। यही प्रक्रिया रुधिर का जमना कहलाती है। रुधिर का थक्का थोड़ी देर बाद सिकुड़ने लगता है जिससे पीले रंग का पारदर्शक द्रव फाइब्रिनोजन जाल से छनकर बाहर आता है इस द्रव को सीरम कहते हैं। सीरम के अलग होते ही तन्तुक जाल की कोशिकाएँ एक ठोस थक्का बनाती हैं। जिसकी वजह से घाव से रुधिर आना बन्द हो जाता है। इस प्रकार से रुधिर के जमने में चार से आठ मिनट का समय लगता है।
प्रोथ्रोम्बिन तथा फाइब्रिनोजन का निर्माण यकृत में होता है, परन्तु प्रोथ्रोम्बिन के निर्माण के लिये विटामिन K की आवश्यकता होती है। कुछ मनुष्यों में रुधिर का थक्का देर से जमता है और जरा-सी चोट लगने पर देर तक बहता रहता है जिससे मृत्यु तक की संभावना हो जाती है। अगर रुधिर का थक्का न बने तो यह एक प्रकार का रोग है जिसे हीमोफीलिया (Haemophilia) कहते हैं। यह रोग आनुवंशिक होता है जिसमें स्त्री रोग वाहिका का कार्य करती है और मनुष्य हीमोफीलिया का शिकार होता है।
रुधिर के कार्य
(Functions of Blood)
शरीर में रुधिर निम्नलिखित कार्य सम्पादित करता है -
1. इसमें उपस्थित हीमोग्लोबिन के कारण ऑक्सीजन के परिवहन में बहुत सहायता मिलती है।
2. कार्बन डाइऑक्साइड, पोषक पदार्थों, उत्सर्जी पदार्थों, हॉर्मोन्स आदि का परिवहन रुधिर के संचरण के कारण ही सम्भव होता है।
3. यह शरीर के ताप पर नियंत्रण कर ताप को एक-सा बनाए रखता है।
4. श्वेत रुधिर कणिकाएं जीवाणुओं आदि का भक्षण कर रोग से बचाव करती है।
5. रुधिर शरीर की सफाई का कार्य भी करता है, क्योंकि यह मृत या टूटी-फूटी कोशिकाओं को ऊतकों से यकृत आदि अगों तक ले जाता है। इन अंगों में इन कोशिकाओं के पदार्थों को नष्ट कर दिया जाता है।
6. रुधिर थक्का जमाने तथा घाव भरने का कार्य करता है।
7. रुधिर ही शरीर के विभिन्न अगों में समन्वय स्थापित करता है।
8. रक्त शरीर के ऊतकों को नम रखने का कार्य भी करता है। वास्तव में प्लाज्मा कुछ भाग का रक्त कोषाणुओं से रिस-रिस कर निकलता रहता है। इससे शरीर के ऊतक नम होते रहते हैं।
रक्त समूह या रुधिर वर्ग
(Blood Groups)
लाल रुधिराणुओं की कोशाकला में उपस्थित प्रतिजनों के आधार पर लैण्डस्टीनर ने व्यक्तियों को चार श्रेणियों में बाँटा जिन्हें रुधिर वर्ग (Blood groups) कहते हैं। ये निम्न हैं -
1. रुधिर वर्ग 'A' - इस रुधिर वर्ग में लाल रुधिर कणिकाओं में एग्लूटिनोजन A तथा एण्टी B एग्लूटिनिन (Anti B agglutinin) होता है। इस वर्ग का व्यक्ति A तथा 0 वर्ग वाले व्यक्तियों से रुधिर ले सकता है।
2. रुधिर वर्ग 'B' - इस रुधिर वर्ग के व्यक्ति के लाल रुधिर कणिकाओं में एग्ल्यूटिनोजन B तथा एग्ल्यूटिनिन एण्टी A होता है। इस वर्ग के व्यक्ति B और 0 रुधिर वालों से रुधिर ले सकते हैं तथा B और AB वर्ग वाले व्यक्ति को रुधिर दे सकते हैं।
3. रुधिर वर्ग 'AB' - इस रुधिर वर्ग वाले व्यक्ति में लाल रुधिर कणिकाओं में एग्ल्यूटिनोजन A और B दोनों उपस्थित रहते हैं, परन्तु एग्लूटिनिन अनुपस्थित होता है। यह रुधिर वर्ग सभी रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों से रुधिर ले सकता है इसीलिये इस वर्ग के व्यक्तियों को सर्वग्राही ( universal recipient) कहते हैं। इस वर्ग के व्यक्ति सिर्फ अपने ही वर्ग (AB) वाले व्यक्ति को रुधिर देते हैं।
4. रुधिर वर्ग '0' - इस रुधिर वर्ग वाले व्यक्ति में लाल रुधिर कणिकाओं में एग्ल्यूटिनिन एण्टी A तथा B होता है। परन्तु लाल रुधिर कणिका में एग्ल्यूटिनोजन का अभाव होता है। इस वर्ग वाले व्यक्तियों का रुधिर दूसरे व्यक्ति को देने पर उसकी लाल रुधिर कणिकाओं में अभिश्लेषण ( clumping) नहीं होता है। यही कारण है कि इस वर्ग के व्यक्ति सभी वर्ग के व्यक्ति को रुधिर दे सकते हैं परन्तु ले नहीं सकते हैं। अतः 0 वर्ग के व्यक्ति सर्वप्रदाता (universal donor) कहलाते हैं।
हृदय की बनावट
(Heart)
हृदय एक खोखला, माँसपेशियों से निर्मित अंग है। यह झिल्ली का एक थैला है जो बन्द के बराबर है। हृदय के चारों ओर एक मोटी जान्तव ऊतक से निर्मित पर्त रहती है, जो तीन पर्तों से बनी है।
(i) परिहृदय स्तर (Pericardium) परिहृदय दोहरे स्तर का थैला है इसका एक स्तर बाहरी अंगों से हृदय को जोड़ता है तो दूसरा हृदय पेशी से सटा रहता है। इन दोनों के बीच सीरम द्रव भरा रहता है जो इसको चिकना बनाये रहता है। इस द्रव से दोनों स्तर आपस में रगड़ नहीं खाते और हृदय की संकुचन प्रसरण गति आसानी से होती है।
(ii) हृदय पेशी स्तर (Mayocardium) - हृदय पेशी स्तर में विशेष प्रकार के तन्तु जो अनैच्छिक पेशी वर्ग के होते हैं जिनके फैलने से हृदय के कक्षों की क्षमता बढ़ जाती है व संकुचन से घट जाती है। हृदय के दायें व बायें भाग में कोई सम्बन्ध नहीं रहता है। यह एक दीवार सेप्टम द्वारा विभाजित होते हैं। यह माँसपेशी स्तर ऊपर अलिन्द की तरफ पतला व नीचे नलियों की तरफ मोटा होता है।
(iii) अन्तः हृदय स्तर (Endocardium) - यह हृदय अभ्यान्तर की कोमल कला है जो चपटी अन्तः कला कोशिकाओं से बनी होती है। हृदय के अन्दर रहने वाला यह एण्डोथीलियम का स्तर रक्त नलिकाओं के अभ्यान्तर व हृदय के अन्दर के कपाट आदि को भी आच्छादित करता है परन्तु इस स्तर के कुछ सूत्र ऊपरी कक्षों व नीचे के कक्षों में सम्मिलित रूप से रहते हैं जिनकी वजह से नीचे के दोनों कक्षों व ऊपर के दोनों कक्षों में संकुचन व शिथिलन की क्रियाएँ एक साथ एक ही समय में रहती हैं। 5. हृदय की आन्तरिक रचना हृदय का आन्तरिक खोखला भाग एक अनुदैर्ध्य विभाजक भित्ति के द्वारा दाहिने और बायें दो भागों में बँट जाता है। इन दोनों कक्षों का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं होता है अर्थात् ये स्वतन्त्र कक्ष बन जाते हैं। हृदय का दायाँ भाग अशुद्ध रुधिर के लेन-देन से सम्बन्ध रखता है। दायें व बायें भागों के बीच में एक मोटी दीवार है जो विभाजक भित्ति (septum) कहलाती है। दायें भाग की अपेक्षा बायाँ भाग बड़ा होता है। यह दोनों भाग फिर दो भागों में बँट जाते हैं अर्थात् ऊपर व नीचे। इस प्रकार से कुल चार कोष्ठ बन जाते हैं। दायें तरफ का भाग ऊपर का कक्ष दायें आलिंद तथा निचला कक्ष दायाँ निलय कहलाता है। बाँयी ओर का कक्ष बायाँ आलिन्द तथा नीचे वाला कक्ष बायाँ निलय कहलाता है। निलय की अपेक्षा आलिन्द की भित्तियाँ पतली होती है। दोनों निलय वितरण पम्प की तरह काम करते हैं तथा रुधिर को बाहर भेजते हैं।
हृदय के प्रत्येक भाग की रचना निम्नलिखित है-
(i) दायाँ आलिन्द - शरीर कोशिकाओं से अशुद्ध रुधिर लाने वाली शिरिकाएँ मिलकर शिराएँ - बनाती है। शरीर के ऊपरी भाग में आने वाली शिराएँ मिलकर उर्ध्व महाशिरा बनाती हैं। निचले अंगों से आने वाली शिरा निम्न महाशिरा नीचे से आने वाले अशुद्ध रुधिर को लाती है। ये दोनों महाशिरा अपना अशुद्ध रुधिर दायें आलिन्द में डालती है। दायें आलिन्द के संकुचन से घट जाती है उसमें से रक्त का थक्का लगता है। इससे बीच का त्रिकपार्द्विकी कपाट वाला द्वार खुल जाता है और रुधिर निलय में चला जाता है। दायें आलिन्द में तीन छिंद्र होते हैं- (i) उर्ध्व महाशिरा का छिद्र (ii) निम्न महाशिरा का छिद्र तथा (iii) आलिन्द व निलय के मध्य के द्वार का त्रिकपार्द्विकी कपाट।
(ii) दायाँ निलय - दायें निलय में अशुद्ध रुधिर आलिन्द के कपाट से आता है जिसे त्रिकपार्द्विका कपाट कहते हैं। इसमें एक छिद्र होता है जिसके द्वारा रुधिर फुम्फुसीय धमनी में जाता है जो आगे जाकर दो भागों में बँट जाती है। ये दायें व बायें फुफ्फुस से अशुद्ध रुधिर ले जाती हैं। इसे फुफ्फुसीय धमनी कहते हैं। इसमें अशुद्ध रुधिर होते हुए भी यह धमनी कहलाती है क्योंकि यह हृदय से रुधिर बाहर ले जाने का कार्य करती है। सभी वाहिनियाँ जो हृदय से जाती हैं, धमनी कहलाती हैं।
(iii) बायाँ आलिन्द - हृदय के बायें भाग का ऊपरी कक्ष बायाँ आलिन्द कहलाता है। यह कक्ष दायें आलिन्द से कुछ छोटा होता है। इसकी भित्तियाँ दायें आलिन्द की अपेक्षा कुछ मोटी होती हैं। इसमें चार रुधिर नलिकाओं के मुखद्वार हैं। ये चारों मुख द्वार चार फुफ्फुसीय शिराओं के हैं इन चारों फुफ्फुसीय शिराओं में से दो दाहिने फुफ्फुस से तथा दो बायें फुफ्फुस से आती हैं और ऑक्सीजन मिश्रित शुद्ध रुधिर को बायें आलिन्द तक लाती हैं। शुद्ध रुधिर को लाने वाली ये चार नलिकाएँ भी जो शिराएँ कहलाती हैं।
(iv) बायाँ निलय - हृदय के बायें भाग का निचला कोष्ठ बायाँ निलय सबसे बड़ा कक्ष है। इसकी मित्तियाँ भी मोटी होती हैं। इसका कारण यह है कि इस कक्ष का काम सबसे अधिक महत्व का है। बायें आलिन्द के संकुचन के फलस्वरूप शुद्ध रुधिर बायें निलय में भर जाता है। इसके बाद बायें निलय की बारी आती है इससे पहले ही बायें आलिन्द तथा बायें निलय के मध्य कपाट बन्द हो चुका होता है। बायें निलय के संकुचित होने से शुद्ध रुधिर इसमें से निकलने वाली नलिका महाधमनी के द्वार को धक्के से खोल देता है और उसी में से वह निकलता है। महाधमनी के मुख पर भी कपाट लगे रहते हैं, जो रुधिर को वापस लौटने से रोक देते हैं। महाधमनी से रुधिर पूरे शरीर में संचरण के लिये जाता है।
हृदय स्पन्दन एवं उसकी मात्रा - हृदय के निलय में निरन्तर संकुचित होने के कारण रुधिर अत्यधिक झटके के साथ महाधमनी एवं सहायक धमनियों में एक-एक बार बहता है। इस क्रिया को हृदय स्पन्दन या हृदय दर कहते हैं। एक मिनट में धमनी में उतने ही स्पन्दन होते हैं जितने कि हृदय में एक मिनट में हृदय या नाड़ी में जितने भी स्पन्दन होते हैं उनसे ही नाड़ी की दर भी ज्ञात की जाती है। स्वस्थ व्यक्ति में यह दर 70 से 80 प्रति मिनट, वृद्ध जनों में लगभग 60 प्रति मिनट तथा नवजात बच्चों में 130- 140 प्रति मिनट तथा बालक में 120 प्रति मिनट होती है।
हृदय के कार्य - हृदय रुधिर परिसंचरण का मुख्य अंग है। यद्यपि इस कार्य में अन्य भी सहयोग प्रदान करते हैं, किन्तु हृदय के कुछ कार्य इतने महत्वपूर्ण हैं कि उनके बिना रुधिर परिसंचरण का कार्य सम्पन्न होना असंभव है। रुधिर परिसंचरण के लिये निरन्तर रुधिर के तीव्र प्रवाह की आवश्यकता होती है। अतः हृदय पम्प की भाँति निरन्तर झोंके से रुधिर प्रवाहित करता है जिससे शरीर के सभी भागों से रुधिर पहुँचने में सुविधा होती है। हृदय से निकला हुआ शुद्ध रुधिर परिसंचरण करता हुआ कोशिकाओं द्वारा शरीर के प्रत्येक सूक्ष्म कोशिकाओं को पोषक तत्व व ऑक्सीजन प्रदान करता है। फेफड़ों में शुद्ध हुआ रुधिर पुनः हृदय के बायें निलय में वापस आ जाता है जिससे हृदय पुनः उस शुद्ध रुधिर को परिसंचरण के लिये पम्प करके मूल धमनी में भेजता है। इस प्रकार शुद्ध रुधिर को सम्पूर्ण शरीर में पहुँचाने तथा अशुद्ध रुधिर को पुनः परिसंचरण के लिए फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए भेजने का कार्य अनवरत गति से होता है।
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- प्रश्न- प्रोटीन की संरचना, संगठन बताइए तथा प्रोटीन का वर्गीकरण व उसका पाचन, अवशोषण व चयापचय का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों, साधनों एवं उसकी कमी से होने वाले रोगों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'शरीर निर्माणक' पौष्टिक तत्व कौन-कौन से हैं? इनके प्राप्ति के स्रोत क्या हैं?
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण कीजिए एवं उनके कार्य बताइये।
- प्रश्न- रेशे युक्त आहार से आप क्या समझते हैं? इसके स्रोत व कार्य बताइये।
- प्रश्न- वसा का अर्थ बताइए तथा उसका वर्गीकरण समझाइए।
- प्रश्न- वसा की दैनिक आवश्यकता बताइए तथा इसकी कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों को बताइए।
- प्रश्न- विटामिन से क्या अभिप्राय है? विटामिन का सामान्य वर्गीकरण देते हुए प्रत्येक का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वसा में घुलनशील विटामिन क्या होते हैं? आहार में विटामिन 'ए' कार्य, स्रोत तथा कमी से होने वाले रोगों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- खनिज तत्व क्या होते हैं? विभिन्न प्रकार के आवश्यक खनिज तत्वों के कार्यों तथा प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शरीर में लौह लवण की उपस्थिति, स्रोत, दैनिक आवश्यकता, कार्य, न्यूनता के प्रभाव तथा इसके अवशोषण एवं चयापचय का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रोटीन की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- क्वाशियोरकर कुपोषण के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- भारतवासियों के भोजन में प्रोटीन की कमी के कारणों को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
- प्रश्न- क्वाशियोरकर तथा मेरेस्मस के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
- प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
- प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
- प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
- प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
- प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
- प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- एनीमिया के प्रकारों को बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन के बारे में अति संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घेंघा के बारे में बताइए।
- प्रश्न- खनिज क्या होते हैं? मेजर तत्व और ट्रेस खनिज तत्व में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- लौह तत्व के कोई चार स्रोत बताइये।
- प्रश्न- कैल्शियम के कोई दो अच्छे स्रोत बताइये।
- प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
- प्रश्न- भोजन पकाने की विभिन्न विधियाँ पौष्टिक तत्वों की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? विस्तार से बताइए।
- प्रश्न- “भाप द्वारा पकाया भोजन सबसे उत्तम होता है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- भोजन विषाक्तता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भूनना व बेकिंग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- खाद्य पदार्थों में मिलावट किन कारणों से की जाती है? मिलावट किस प्रकार की जाती है?
- प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
- प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- वंशानुक्रम से आप क्या समझते है। वंशानुक्रम का मानवं विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
- प्रश्न . वातावरण से क्या तात्पर्य है? विभिन्न प्रकार के वातावरण का मानव विकास पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न . विकास एवं वृद्धि से आप क्या समझते हैं? विकास में होने वाले प्रमुख परिवर्तन कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- विकास के प्रमुख नियमों के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
- प्रश्न- पूर्व-बाल्यावस्था में बालकों के शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
- प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
- प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
- प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
- प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
- प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
- प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
- प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
- प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
- प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
- प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
- प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
- प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
- प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
- प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
- प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?